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मुक्तिदाता
इंटरनेट तकनीक नहीं , मुक्तिदाता है। इसने लेखनी को मुक्त कराया है- कागज, कलम, डाक टिकट, पता, अखबार, चैनल, संपादक, जुगाड़, भाव, टालमटोल, पसंद-नापसंद, अच्छे-बुरे, स्वीकृति-अस्वीकृति और इंतजार जैसे न जाने कितने बन्धनों से ।
बिलकुल सही कहा आपने, पीके।
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