Thursday, July 2, 2009

आम आदमी

न्यूज चैनल के दफ्तर से बाहर आते मेरे पत्रकार मित्र ने कहा, सॉरी यार तुम्हें इतना वेट कराया। बुलेटिन तो खत्म हो गया था पर इसी बीच मुद्रास्फीति की दर आ गई, उसी में उलझ गया। मैंने कहा, यार महंगाई तो चढ़ती ही जा रही है, न जाने कहां जाकर रुकेगी। दोस्त ने एक रिक्शेवाले को हाथ दिया और हम उसमें बैठकर कार पार्किंग की ओ र चल पड़े। दोस्त ने कहा, हर चीज के दाम बढ़ रहे हैं। मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया है, पेट्रोल -डीजल में आग लगी हुई है। कंपनी साली इंक्रीमेंट देने को तैयार नहीं। आम आदमी कैसे जिएगा दिल्ली में। तभी रिक्शेवाले ने कहा, लो आ गया साहब। मैंने पूछा कितने पैसे ? रिक्शेवाले ने कहा, 20 रुपए। दोस्त झल्लाया, भइया 10 रुपए लगते हैं । नया नहीं हूँ, तीन साल से आ रहा हूं। रिक्शेवाला अड़ा रहा, बोला, दो आदमी के 20 रुपए लगते हैं। दोस्त ने गुस्से और नफरत के साथ पर्स से दस और पांच के नोट निकाले और रिक्शेवाले को देते हुए बुदबुदाया, लूट लो भइया। आम आदमी का क्या है, वह तो हर तरफ से मारा जा रहा है।

6 comments:

  1. अच्छा अंतर्विरोध छोडा है आपने।
    आम आदमी वह पत्रकार मित्र था या वह रिक्शे वाला?

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  2. Bachpanse yahee suntee aa rahee hoon,ki, mahangaayee ne aag laga dee hai...! Hamare zamane me to aisa nahee thaa..!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

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  3. ***आम आदमी का क्या है, वह तो हर तरफ से मारा जा रहा है। ***
    भाई पीके, आपने तो मुश्किल खड़ी कर दी। आज के बाद यह तय करना बहुत मुश्किल हो रहेगा कि आम आदमी आखिर है कौन ?

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  4. आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।

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  5. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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